उनके दिल के दरवाजे अब मेरी खातिर नहीं खुलेंगे/ मेरे बहुत चाहने पर भी, हँसकरके वो नहीं मिलेंगे//
हंसी खेल की बात ज़रा सी, रूप विकट लेगी झगड़े का/ हल न सवालों का निकलेगा, मुश्किल में,सम्बन्ध पड़ेगा/ बहुत चाहने पर भी आँसू, इन हांथों से नहीं पुछेंगे//
एक भूल का इतना सारा, दंड मिलेगा कब सोचा था? सागर-नदिया साथ चलेंगे, लेकिन उनका मेल न होगा/ बहुत चाहने पर भी नगमे इन होठों की नहीं सुनेंगे/
सोच बहुत ऊंची है .. पंख अभी नाजुक हैं.. आसमान बहुत ऊंचा . सोचना है कि कैसे छूना है उड़ान अभी बहुत लम्बी है !!
शब्द पुराने हैं ...बात पुरानी है ..पल पल गुज़रा कैसे ..यह एक कहानी है .!!