गीत नवगीत कविता डायरी

14 January, 2015

भीख में प्रेम

क्यूँ मांगते हो भीख जैसी प्रेम की अब सोचा नहीं ..इतने दिनों से कभी गुज़रे होंगे दिवस कैसे और ये ख़ामोश चीखतीं विलाप करती हुईं रातें ... कभी पलट कर देखा कैसे हो गई विलीन मेरे अधरों की मुस्कुराती रेखा .. बहुत आगे पग बढ़ा कर पीछे लौटना मेरा बार-बार पुरानी बातों का औटना . तुम्हारा तथाकथित प्रेम पीछे छोड़ आई हूँ मेरा बिखरना गए दिनों की बात है अब मेरा हौसला मेरे साथ है तंज़ सारे मरोड़कर रंज़ सारे छोड़कर पंथ अपना चुन लिया मैंने ख़ुद को इन अक्षरों में बुन लिया मैंने ...!!
~भावना

12 January, 2015

नवगीत

अनुभूति का संक्रांति विशेषांक प्रकाशित हुआ है, उसमे प्रकाशित अन्य नवगीतकारों के साथ आप मेरा नवगीत भी पढ़ सकतें है।पूरा गीत आप इस लिंक पर पढ़ सकतें है।
http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/suraj/2015/bhawna_tiwari.htm

03 January, 2015

अस्तित्व-प्रमाण

चौखट पर उकेरे 

कितने ही स्वास्तिक,

मुख्यद्वार पर छोड़े

हाथों के थापे ,

वो मंगल गान 

जिनमें समाहित था कल्याण ।

मैं ही कर्त्ता थी 

मैं ही शुभ थी

मुखमंडल था आभयमान ।

पर देहरी लाँघते ही 

बदल गए अर्थ ..

वो स्वस्तिवाचन 

मेरे स्वर को कर गया मौन

शीशे से घुलते हैं भाव

पोषित होता है संताप ।

यज्ञ की आहुतियां 

जला गईं मेरा लेख ,

शांति का स्वप्न 

बढ़ा गया अश्रुओं का ताप ।

है मुझे खेद

ओ मेरे जीवन वेद

नहीं फला मुझे तेरा 

श्रीमय उच्चारण /

सप्तपदों के बाद 

मुझ मंगलकारी को निर्विवाद

आपसे चाहिए होता है श्रीमान 

मेरे अस्तित्व का प्रमाण ।।

      @-भावना